Milkha Singh Passed Away भारत के एक महान ऐथलीट मिल्खा सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। 91 वर्षीय मिल्खा सिंह कोरोना संक्रमित हो गए थे जिसके कारण उनकी तबियत बिगड़ती जा रही थी। उनको चंडीगढ़ के अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके परिवार से पता चला की ‘उन्होंने रात 11.30 पर आखिरी सांस ली।’
Milkha Singh Passed Away
महान ऐथलीट मिल्खा सिंह का कोविड-19 से एक महीने जूझने के बाद निधन हो गया
उनकी वाइफ निर्मल कौर का भी कोरोना से हाल ही में निधन हो गया था
भारत के महान “फ्लाइंग सिख” मिल्खा सिंह का एक महीने तक कोरोना संक्रमण से जूझने के बाद शुक्रवार को निधन हो गया। मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1928 को पाकिस्तान में हुआ था। इससे पहले उनकी पत्नी और भारतीय वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान निर्मल कौर ने भी कोरोना संक्रमण के कारण दम तोड़ दिया था। उनके परिवार में उनके बेटे गोल्फर जीव मिल्खा सिंह और तीन बेटियां है।
पीएम ने जताया दुख, लिखा- हमने महान ऐथलीट खो दिया
महान ऐथलीट के निधन पर पीएम मोदी ने तस्वीर शेयर करते हुए शोक व्यक्त किया है। उन्होंने ट्वीट किया- मिल्खा सिंह जी के निधन से हमने एक महान खिलाड़ी खो दिया, जिसने देश की कल्पना पर कब्जा कर लिया और अनगिनत भारतीयों के दिलों में एक विशेष स्थान बना लिया। उनके प्रेरक व्यक्तित्व ने उन्हें लाखों लोगों का प्रिय बना दिया। उनके निधन से आहत हूं।
मिल्खा सिंह के संघर्ष पर बन चुकी है फिल्म
दिग्गज धावक मिल्खा सिंह के जीवन पर ‘भाग मिल्खा भाग’ नाम से फिल्म भी बनी है। उड़न सिख के नाम से फेमस मिल्खा सिंह ने कभी भी हार नहीं मानी। संघर्षों के आगे घुटने टेकने की बजाय उन्होंने इसकी नींव पर उपलब्धियों की ऐसी अमर गाथा लिखी जिसने उन्हें भारतीय खेलों के इतिहास का युगपुरूष बना दिया। हालांकि मिल्खा सिंह ने कहा था कि फिल्म में उनकी संघर्ष की कहानी उतनी नहीं दिखाई गई है जितनी कि उन्होंने झेली है।
पाकिस्तान में हुआ माता-पिता का कत्ल
आजाद भारत के महान खिलाडियों एक थे मिल्खा सिंह उन्होंने अपने जीवन में बहुत सी परेशानियों का सामना किया पर उन्होने कभी भी अपनी परेशानियों अपने जीवन का रोड़ा न बनने दिया। भारत विभाजन के दौरान उनके माता पिता का क़त्ल हो गया पाकिस्तान में। वह दिल्ली के शरणार्थी कैंपों में रहे छोटे-मोटे जुर्म करके गुजारा करते थे और जेल भी गए। इसके अलावा सेना में भर्ती होने की तीन कोशिश नाकाम रही। पर वो जीवन में कभी हर नहीं माना।
उपलब्धियों की बात करे तो
उन्होंने एशियाई खेलों में चार गोल्ड मेडल और 1958 राष्ट्रमंडल खेलों में भी पीला तमगा जीता , इसके बावजूद उनके कैरियर की सबसे बड़ी उपलब्धि वह दौड़ थी जिसे वह हार गए , रोम ओलंपिक 1960 के 400 मीटर फाइनल में वह चौथे स्थान पर रहे ,उनकी टाइमिंग 38 साल तक राष्ट्रीय रिकॉर्ड रही. इसके अलावा भारत सरकार की तरफ से भी उन्हें 1959 में पद्मश्री से नवाजा गया था।
उनकी कहानी 1960 की भारत पाक खेल मीट की चर्चा के बिना अधूरी रहेगी । उन्होंने रोम ओलंपिक से पहले पाकिस्तान के अब्दुल खालिक को हराया था । पहले मिल्खा पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे जहां उनके माता पिता की हत्या हुई थी लेकिन प्रधानमंत्री नेहरू के कहने पर वह गए । उन्होंने खालिक को हराया और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने उन्हें ‘उड़न सिख’ की संज्ञा दी ।
यह हैरानी की बात है कि मिल्खा जैसे महान खिलाड़ी को 2001 में अर्जुन पुरस्कार दिया गया । उन्होंने इसे ठुकरा दिया था । मिल्खा की कहानी सिर्फ पदकों या उपलब्धियों की ही नहीं बल्कि स्वतंत्र भारत में ट्रैक और फील्ड खेलों का पहला अध्याय लिखने की भी है जो आने वाली कई पीढियों को प्रेरित करती रहेगी ।