Chhath Pooja kaise manate hain | छठ पूजा कब है, षष्ठी पूजा कब है, छठ पूजा क्यों मनाया जाता है?

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Chhath Pooja kaise manate hain

Chhath Pooja kaise manate hain: छठ पूजा या षष्ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाता है। छठ पर्व हिन्दू का एक महत्वपूर्ण पर्व है। सूर्योपासना का अनुपम लोकपर्व मुख्य रुप से बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्र में मनाया जाता है। कहा जाता है कि यह बिहार का सबसे लोकप्रिय पर्व है। ये उनकी संस्कृति है। बिहार में यह पर्व बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। ये बिहार या पूरे भारत का एक ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से चला आ रहा है। ये बिहार की संस्कृति बन चुकी है।

यह पर्व वैदिक आर्य संस्कृति की एक झलक है। ये पर्व मुख्यः रुप से ॠषियो द्वारा लिखी गई ऋग्वेद मे सूर्य पूजन, उषा पूजन और आर्य परंपरा के अनुसार बिहार मे यहा पर्व मनाया जाता हैं।

बिहार में यह पर्व हिन्दुओं के द्वारा मनाये जाने के साथ इस्लाम और अन्य धर्मावलम्बी मनाते हुए दिख जाते है। धीरे-धीरे यह त्यौहार प्रवासी भारतीयों साथ-साथ पूरे विश्व में प्रचलित है। छठ पूजा सूर्य, उषा, प्रकृति,जल, वायु और उनकी बहन छठी म‌इया को समर्पित है।

छठ पूजा कब है।

इस वर्ष छठ पूजा 30 अक्टूबर 2022 को है ।

छठ पूजा 2022 शुभ मुहूर्त

30 अक्टूबर (संध्या अर्घ्य) सूर्यास्त का समय : शाम 5 बजकर 37 मिनट

31 अक्टूबर- सूर्योदय का समय – सुबह 06 बजकर 31 मिनट पर

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छठ पूजा (Chhath Pooja)

छठ पूजा के अनुष्ठान काफी कठिन है। यह चार दिन का त्योहार है। इसमें पवित्र स्नान, उपसान उपवास और पीने के पानी (वृत्ता) से दूर रहना, लम्बे समय तक पानी में खड़ा रहना पड़ता है। इसमें प्रसाद (प्रार्थना), और अर्घ्य देना शामिल है। यह त्योहार आमतौर तक महिलाएं रहती है। लेकिन यह पर्व लिंग पर नहीं आधारित है। इस बड़ी मात्रा में पुरुष द्वारा मनाया जाता है। छठ महापर्व के व्रत को स्त्री – पुरुष – बुढ़े – जवान सभी लोग करते हैं।

Chhath Pooja kaise manate hain
Chhath Pooja kaise manate hain

छठ पूजा की शुरुआत (Chhath Pooja kaise manate hain)

पौराणिक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे। तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवराण्य के देव सूर्य के मन्दिर में छठ मइया की आराधना की और छठ मैया प्रसन्न होकर उन्हें सर्वगुण सम्पन्न पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। इससे अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव ने असुरों पर देवता की विजय दिलाई। कहा जाता है कि उसी समय से देव सेना षष्ठी के देव नाम ने एक मन्दिर का निर्माण कराया और तभी से उस स्थान पर छठ पूजा मनायी जाने लगी। तभी से छठ का प्रचलन शुरु हो गया।

नामकरण

छठ, षष्ठी का अपभ्रश रुप है। छठ पूजा कार्तिक मास के अमावस्या की दीपावली के तीन दिन बाद शुरु होता है। दीपावली बाद मनाया जाने वाला चार दिवसीय व्रत सबसे कठिन और महत्वपूर्ण कार्तिक शुक्ल पक्ष की होती है। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में मनाया जाने के कारण इस छठ पूजा कहते है। छठ पूजा साल में दो बार होता है। एक चैत्र मास में और दूसरा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। कार्तिक मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि, पंचमी तिथि, षष्ठी तिथि और सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। Chhath षष्ठी देवी माता को कात्यायनी माता के रुप में जाना जाता है। नवरात्रि के दिन माता षष्ठी की पूजा की जाती है।

षष्ठी माता की पूजा हर घर में की जाती है, माता की पूजा घर के सदस्य को सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए करते है। षष्ठी माता की पूजा, सूरज भगवान और गंगा की पूजा देश में प्रचलित है। इस पुजा में गंगा स्थान या नदी तालाब जैसे जगह होना अनिवार्य हैं यही कारण है कि छठ पूजा के लिए सभी नदी तालाब कि साफ सफाई किया जाता है और नदी तालाब को सजाया जाता है प्राकृतिक सौंदर्य में गंगा मैया या नदी तालाब मुख्य स्थान है।

लोक आस्था का पर्व Chhath Pooja kaise manate hain

भारत में सूर्योपासना का प्रसिद्ध पर्व है। सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ पूजा कहते है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहला चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है, इस चैत्र छठ पूजा कहते है। दूसरा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार जब पांडवों ने जुए में अपना सारा राज-पाट हार गये थे तब श्री कृष्ण के बताने पर द्रोपदी ने छठ मइया का व्रत रखा। तब उनकी मनोकामना पूरी हो गयी और राजपाट वापस मिल गया। पौराणिक कथा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का सम्बंध भाई-बहन का है।

पारिवारिक सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत रखा जाता है। यह व्रत स्त्री और पुरुष समान रूप से मनाते है।

छठ पर्व को वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाये तो षष्ठी तिथि खगोलीय दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। इस समय सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर अधिक मात्रा एकत्रित हो जाती है। इसी कारण इसके कुप्रभावों से मानव की यथासम्भव रक्षा करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है। पर्व पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा सम्भव है। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिलता है।

छठ पूजा किस प्रकार मनाया जाता है?Chhath Pooja kaise manate hain

यह पर्व चार दिन का होता है। पहले दिन सेन्धा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी से बना प्रसाद ग्रहण करके व्रत की शुरुआत की जाती है। अगले दिन उपवास प्रारम्भ हो जाता है। व्रति दिनभर अन्न-जल ग्रहण किये बिना व्रत करती है। शाम 7 बजे खीर बनाकर, पूजा करके प्रसाद ग्रहण करती है। इसे खरना कहते है। तीसरे दिन डुबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानि दूध अर्पण किया जाता है। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

लहसुन, प्याज वर्जित होता है। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहाँ भक्ति गीत गाये जाते हैं। अंत में लोगों को पूजा का प्रसाद दिया जाता हैं। इस दौरान व्रत धारी बिना अन्य-जल ग्रहण किये 36 घंटे व्रत रखते है।

नहाय खाय Chhath Pooja kaise manate hain

छठ पर्व का पहला दिन जिसे “नहाय खाय” कहते है। उनकी शुरुआत चैत्र और कार्तिक माह के चतुर्थी से हो जाती है। सबसे पहले घर की सफाई की जाती है उसके बाद उसे पवित्र किया जाता है। व्रतिनी नजदीकी गंगा नदी, गंगा की सहायक नदी या पास के स्वच्छ तालाब में स्नान करते है। व्रती इस दिन नाखून वगैहर को काटकर स्वच्छ जल से साफ करते है। स्वच्छ जल से अच्छी तरह से बाल को साफ करते है। स्नान करके साथ में गंगा जल लाते है खाने बनाने में उपयोग करते है।

इस व्रत में साफ-सफाई का विशेष ध्यान दिया जाता है। इस दिन घर और आस-पास के स्थान को साफ करते है। व्रती सिर्फ एक बार खाना खाते है, खाने में व्रती कद्दू की सब्जी, घी से बना अरवा चावल, मूंग चना की दाल का सेवन करते है। तली हुई पड़ी तथा सामग्री वर्जित है। खाने को मिट्टी के बर्तन, आम की लकड़ी और मिट्टी के बने चूल्हे पर बनाया जाता है। खाना बनने का बाद सबसे पहले व्रती प्रसाद ग्रहण करते है उसके बाद घर के अन्य सदस्य खाना खाते है।

खरना और लोहंडा

छठ पर्व का दूसरा दिन जिसे खरना या लोहंडा कहते है। यह चैत्र और कार्तिक माह के पंचमी को मनाया जाता है, इस दिन व्रती पूरे दिन व्रत रखती है। इस दिन व्रती अन्न तो दूर सूर्यास्त से पहले जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करते है। शाम को चावल गुड़ और गन्ने के रस का प्रयोग करके खीर बनाते है, व्रती खीर को एकान्त में जाकर खीर का प्रसाद ग्रहण करते है। परिवार के सभी सदस्य घर के बाहर जले जाते है। ताकि शोर न हो, शोर में खाने से व्रत के नियमों विरुद्ध है।पुन: व्रती खाकर अपने सभी परिवार जनों एवं मित्रों-रिश्तेदारों को वही ‘खीर-रोटी’ का प्रसाद खिलाते हैं।

संध्या अर्घ्य

यह पूजा का तीसरा दिन होता है, जिसे संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। यह चैत्र या कार्तिक मास को मनाया जाता है। पूरे दिन लोग पूजा की तैयारी करते है। पूजा के लिए विशेष प्रसाद ठेकुआ, चावल के लड्डू, और खीर बनायी जाती है। पूजा के लिए एक बांस की टोकरी होती है जिसे दउरा कहते है। इसमें पूजा का प्रसाद, फल  डालकर देवकारी में रख दिया जाता है। पूजा आर्चना के बाद सूप में एक नारियल, फल और अन्य पूजा के सामान रखकर दउरा को घर के पुरुष अपने सिर पर रखकर घट तक ले जाते है। महिलाएं पीछे-पीछे छठ गीत गाते हुए गंगा घाट तक जाती है।

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